परशुराम जन्मोत्सव । Parashuram Janmotsav

    परशुराम जन्मोत्सव । Parashuram Janmotsav

    भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक बताया गया है। संपूर्ण भारत में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान पुरषोत्तम जन्मोत्सव मनाया जाता है। हालाँकि शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व भी होता है। भगवान पुरषोत्तम का जन्मोत्सव बहुत हर्षोउल्लास के साथ माना जाता है। प्रत्येक शहर में पुरषोत्तम भगवान की सुंदर सुंदर झांकी निकाली जाती है।

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    परशुराम जी के पिता का नाम जमदग्नि ॠषि और माता का नाम रेणुका था। परशुराम जी जमदग्नि ॠषि की चौथी संतान थी। काफी कम इंसान जानते है की भगवान परशुराम ने अपने पिता के कहने पर अपनी माता का वध किया था। माँ का वध करने की वजह से परशुराम को माँ वध का पाप लगा था। अपने ऊपर लगे पाप को मिटाने के लिए परशुराम जी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी।

    तपस्या से प्रसन्न होने पर भगवान शिव ने परशुराम को उस पाप से मुक्त किया और मृत्युलोक के कल्याणार्थ हेतु परशु अस्त्र दिया। भगवान परशुराम अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध थे, हालाँकि परशुराम भगवान कभी भी बिना किसी कारण के क्रोध नहीं करते थे। एक बार सम्राट सहस्त्रार्जुन ने जमदग्नि ॠषि के आश्रम के जाकर अत्याचार करते हुए आश्रम में आग लगा दी और कामधेनु गाय को भी अपने साथ ले गए।

    जब यह बात परशुराम जी को पता चली तो उन्हें बहुत ज्यादा क्रोध आ गया और उन्होंने उसी समय पर पृथ्वी से क्षत्रियों को समाप्त करने का प्रण लिया। प्रण लेने के बाद परशुराम जी ने सबसे पहले सहस्त्रार्जुन की अक्षौहिणी सेना के साथ साथ राजा के सौ पुत्रों का वध किया। सहस्त्रार्जुन और उसके पुत्रो का वध करने के बाद परशुराम जी ने पृथ्वी पर घूम घूमकर क्षत्रियों को समाप्त किया।

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