एकादशी की कथा । Ekadashi ki katha
हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक माह में दो पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते है। दोनों ही पक्ष में एकादशी आती है। सनातन धर्म में एकादशी के दिन को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। जो भी इंसान एकादशी के दिन व्रत रखता है और एकादशी माता की उपासना सच्चे मन और पूर्ण श्रद्धा के साथ करता है उसकी मनोकामना बहुत जल्द पूर्ण होती है। चलिए अब हम आपको एकादशी की कथा के बारे बताते है।
प्राचीन समय में मुंडनव नामक राक्षस था, जिसने कठोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त किया था की उसका वध कोई पुरुष नहीं कर सकता है। वरदान प्राप्त करने के बाद मुंडनव ने भगवान नारायण को युद्ध की चुनौती दी। भगवान नारायण जानते थे की मुंडनव को पराजित करना नामुमकिन है। ऐसे में नारायण भगवान ने अपने शरीर के ग्यारह आध्यात्मिक अंगों से एक दिव्य और मनमोहक कन्या को उत्पन्न किया।
मुंडनव उस कन्या के रूप से बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ और उसने उस कन्या से विवाह करने को कहा। कन्या ने विवाह के लिए एक शर्त रखी की अगर मुंडनव उसे युद्ध में पराजित कर देगा तो वो उससे शादी कर लेगी। युद्ध में कन्या ने मुंडनव रक्ष का वध कर दिया। मुंडनव के वध से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उस कन्या को वरदान दिया की आज से तुम एकादशी के नाम से जानी जाओगी।
जो भी इंसान एकादशी के दिन व्रत करेगा उसकी मनोकामना जल्द पूर्ण होने के साथ साथ वो इंसान एकादश इंद्रियों को नियंत्रित कर सकता है। कुछ महिलाऐं एकादशी का व्रत निर्जला रखती है अर्थात वो पूरे दिन पानी भी ग्रहण नहीं करती है। एकादशी के दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ एकादशी माता की उपासना और व्रत रखने के साथ साथ कथा सुनने या पढ़ने से इंसान के सभी पाप समाप्त होते है और मोक्ष प्राप्त होता है।