विवाह के मंत्र हिंदी में । Wedding Mantra in Hindi

हिन्दू धर्म में विवाह को एक बेहद ही पवित्र आयोजन माना जाता है और कहा जाता है की यह दो आत्माओं के बंधन को दर्शाता है, जहाँ एक पुरुष और महिला एक साथ होकर अपना एक नया संसार बनाने के मार्ग की शुरुआत करते हैं। इस पावन बेला में विवाह मंत्रों का एक बड़ा ही खास महत्व होता है, आप भी जानें विवाह के दौरान पढ़े जाने वाले इन 7 मंत्रों को।

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विवाह के मंत्र हिंदी में । Wedding Mantra in Hindi

तीर्थव्रतोद्योपन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्याय वामांगमायामि
तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी ।।

अर्थ: इस मंत्र के माध्यम से वधु कहती है की यदि आप कभी भी किसी व्रत-उपवास और किसी धार्मिक स्थान पर जाएं तो आप मुझे भी अपनी संगिनी के रूप में साथ ले जाएं, यदि आपको यह स्वीकार्य है तो मैं विवाह हेतु तैयार हूँ।

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम।।

अर्थ: इस मंत्र के माध्यम से वधु कहती है की जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का आदर और सम्मान करते हैं उसी प्रकार से आप मेरे माता-पिता को समतुल्य मान कर उतना ही आदर सत्कार करेंगे और परिवार की मर्यादा का पालन करेंगे। यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी बनना स्वीकार करती हूँ।

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं ।।

अर्थ: इस तीसरे मंत्र के माध्यम से वधु अपने वर से वचन मांगती है और कहती है की आप यह वचन दीजिये की आप जीवन के तीनों अवस्थाओं में मेरे साथी के रूप में संग खड़े रहेंगे और मेरी बातों को महत्व देते हुए उनका पालन करेंगे, यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी होना स्वीकार्य करती हूँ।

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं ।।

अर्थ: विवाह के इस चौथे वचन के माध्यम से कन्या कहती है की आप अब तक घर-परिवार की चिंता से मुक्त थे, परंतु अब आप विवाह के इस बंधन में बंध रहे हैं तो आपको घर परिवार की जिम्मेवारियों को समझना होगा और उन्हें निभाना होगा। यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी होना स्वीकार्य करती हूँ।

स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या ।।

अर्थ: इस पाँचवें मंत्र के माध्यम से वधु कहती है की आपको घर परिवार के सभी तरह के लेन देन के मामलों में मेरी भी राय और स्वीकृति लेनी होगी, यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी होना स्वीकार्य करती हूँ।

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम ।।

अर्थ: विवाह के इस छठे मंत्र के माध्यम से वधु कहती है की यदि मैं कभी अपने सखी-सहेलियों के साथ कुछ समय व्यतीत करती हूँ तो आप उस वक्त किसी भी प्रकार से मेरा अपमान नहीं करेंगे। साथ ही आप स्वयं को बुरी लातों जैसे जुआ, शराब इत्यादि से दूर रखेंगे, यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी होना स्वीकार करती हूँ।

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परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या ।।

अर्थ: अंतिम वचन के माध्यम से वधु कहती है की आप सभी परायी स्त्रियों को माता और बहन के सामान समझेंगे और हमारे पति-पत्नी के प्रेम के बीच किसी भी अन्य को नहीं आने देंगे। यदि आपको यह मान्य है तो मैं आपकी वामांगी होना स्वीकार्य करती हूँ।

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