ऐसा कहा जाता है की मारवाड़ी लोग अपने घर में इस खास दिए को जलाते हैं इसलिए उनके घर धन बरसाते हैं। जाने इस बारे में पूरी विस्तारित जानकारी।

ऐसा कहना गलत नहीं की जिन्हें जीवन के सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते हैं और जिन्हें मानसिक सुख प्राप्त हो, सही मायने में उन्हें ही ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। हमारे धर्म में पूजा के कई अलग-अलग रूप बताये गए हैं ताकि हम ईश्वर का स्मरण कर सकें और धन और सफलता प्राप्त कर सकें। उन्हीं में से एक है ये महालक्ष्मी को दीपक दिखाने की पूजा। आइए जानते हैं इस पूजा को सही तरीके से कैसे करें।

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सुख प्राप्ति के लिए पित्तल की थाल में दीपक जलाने का तरीका
हमारी संस्कृति कहती है की पित्तल की थाल में ही भगवान को दीप दिखाना चाहिए, और यह प्रथा आज भी चली आ रही है। इस पूजा के लिए भी हमें सबसे पहले पित्तल की थाल लेना होगा। अब हमें इस पित्तल की थाल में दीपक जलाने के लिए रुई की बत्ती लेनी है। अब इग्यारह रुई की बत्ती को एक साथ पहले लाल धागे से बाँध लें। इसे नक्षत्र धागा भी कहते हैं।

अब आपको थाली में अलग से कोई तेल नहीं डालना है बल्कि बांधे हुए रुई को घी में एक बार डूबा लेना है। दीया उतना ही जलेगा जितना बत्ती घी को सोख लेगी। हमें अपनी सुविधा के अनुसार 11, 21 या 27 रुई घी में अच्छी तरह भिगो लेने चाहिए। इसके बाद बत्ती को पित्तल की थाल में डाल दें। इस दीपक को उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके जलाना चाहिए। हमें उसी के अनुसार रुई के बण्डल को रखने चाहिए।

दीपक जलाने के लिए बत्ती का सिरा थाली के बाहर होना चाहिए। थाली में पड़े भीतरी छोर पर, महालक्ष्मी से प्रार्थना करते हुए हल्दी कुमकुम लगाना चाहिए। अर्थात जितने धागे हों उतने धागों में हल्दी कुमकुम लगाना चाहिए। फिर प्रत्येक धागे में पीले कुमकुम के ऊपर एक रुपये का सिक्का रखें। ऐसा करते समय, सिक्कों को “ओम ऐश्वर्य लक्ष्मीये नमः” और “ओम सौपक्या लक्ष्मीये नमः” कहते हुए रखना चाहिए।

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इस दीपक को प्रज्वलित करने के बाद मां महालक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति पर फूल चढ़ा सकते हैं। फिर पित्तल की थाली के साथ ही माँ को आरती दिखा दें। यह दीया यदि हम शुक्रवार के दिन जलाते हैं यह बहुत ही खास माना जाता है। साथ ही इस दीपक को हम पूर्णिमा के दिन भी जला सकते हैं। ऐसा लगातार करने से हम अपने घर में सभी प्रकार की बरकतें प्राप्त कर सकते हैं और सभी ऐश्वर्य के साथ जीवन यापन कर सकते हैं।

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